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”इसकी” मौजूदगी, ईरान और अमेरिका दोनों के लिए महत्वपूर्ण है!

पार्सटुडे – एक ईरानी विशेषज्ञ का मानना है कि ईरान के साथ वार्ता के लिए अमेरिका के ख़त का जवाब भेजने में अबू धाबी के बारे में ईरान के अविश्वास का सबसे महत्वपूर्ण कारण संयुक्त अरब इमारात के ज़ायोनी शासन के साथ घनिष्ठ संबंध हैं।

संयुक्त अरब इमारात के राष्ट्रपति के राजनयिक सलाहकार अनवर क़रक़ाश कुछ समय पहले एक आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल के साथ तेहरान पहुंचे और ईरान के विदेशमंत्री सैयद अब्बास इराक़ची से बातचीत की।

इस बैठक के दौरान, क़रक़ाश ने ईरानी विदेशमंत्री को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प द्वारा सुप्रीम लीडर इमाम खामेनेई के नाम भेजा गया ख़त सौंपा।

पार्सटुडे के अनुसार और “ख़बर ऑनलाइन” वेबसाइट के हवाले से, राजनीतिक विशेषज्ञ रसूल सलीमी ने एक विश्लेषण में लिखा: ईरान द्वारा इमारात के माध्यम से ट्रम्प के पत्र का जवाब भेजने से इनकार करने की सबसे महत्वपूर्ण वजह, ज़ायोनी शासन के साथ इसके घनिष्ठ संबंधों की वजह से इस देश के प्रति अविश्वास है।

यूएई ने पहले अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करके इज़राइल के साथ अपने संबंधों को सामान्य कर लिया था जबकि तेहरान के नज़रिए से, इस कदम का मतलब क्षेत्र में अपने असली दुश्मन के साथ गठबंधन करना था और इन संबंधों का मतलब है कि अबू धाबी तेहरान के लिए एक तटस्थ मध्यस्थ नहीं हो सकता है।

मध्यस्थता में यूएई का सीमित और अविश्वसनीय रिकॉर्ड

सलीमी ने कहा: ओमान के विपरीत, जिसका ईरान और अमेरिका के बीच मध्यस्थता का एक लंबा और सफल इतिहास है, यूएई के पास इस क्षेत्र में अधिक अनुभव नहीं है और इसे एक कूटनीतिक मध्यस्थ की तुलना में एक आर्थिक खिलाड़ी के रूप में अधिक जाना जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यूएई द्वारा ट्रम्प को पत्र भेजने का फ़ैसला संभवतः अबू धाबी के वाशिंगटन के साथ गहरे संबंधों की वजह से लिया गया है, न कि ईरान के साथ उसके संबंधों की वजह से।

हालिया दशकों में यूएई, ईरान के साथ क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता में अधिक शामिल रहा है, विशेष रूप से तीन द्वीपों (तुंबे बुज़ुर्ग, तुंबे कूचिक और अबू मूसा) को लेकर।

घरेलू राजनीतिक और रणनीतिक विचार

इस राजनीतिक विशेषज्ञ के अनुसार, यूएई को इस्तेमाल न करने का ईरान का फ़ैसला भी घरेलू वजहों से है। ट्रम्प की सैन्य धमकियों और परमाणु तनाव के प्रोपेगैंडों में सबसे आगे रहने की वजह से, इज़रायल के करीबी किसी देश के साथ कोई भी सहयोग ईरान के भीतर राजनीतिक आलोचना का कारण बन सकता है।

ओमान की तटस्थता और स्वतंत्र विदेश नीति

विश्लेषण में कहा गया है: संयुक्त अरब इमीरात के विपरीत, ओमान एक तटस्थ विदेश नीति अपनाता है तथा क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता में शामिल होने से परहेज़ करता है। इस देश ने न केवल ईरान के साथ अपने संबंध बनाए रखे हैं, बल्कि अब्राहम समझौते जैसे ईरान विरोधी गठबंधन में शामिल होने से भी इनकार कर दिया है।

यह तटस्थता हुर्मुज़ स्ट्रेट में ओमान की भौगोलिक स्थिति से और मजबूत होती है, जहां इसकी मौजूदगी, ईरान और अमेरिका दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।

श्री सलीमी का कहना है कि इस स्थिति की वजह से ओमान के पास तनाव कम करने के लिए एक मजबूत मक़सद है और इस मक़सद ने उसकी कूटनीतिक विश्वसनीयता में वृद्धि कर दी है।

ईरान से ऐतिहासिक संबंध और आपसी विश्वास

श्री सलीमी ने आगे कहा: ईरान-ओमान संबंध इस्लामी क्रांति से पहले के हैं और प्रतिबंधों के दौरान भी क़ायम रहे हैं। ईरान-इराक़ युद्ध के दौरान ओमान तटस्थ रहा और उसने अरब देशों के साथ संबंध सुधारने में तेहरान की मदद की।

इस पारस्परिक विश्वास ने ओमान को ईरान के लिए एक स्वाभाविक विकल्प बना दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक रसूल सलीमी ने कहा: यूएई के बजाय ओमान को चुनना अप्रत्यक्ष कूटनीति में स्वतंत्रता बनाए रखने की ईरान की रणनीति का हिस्सा है। इस फ़ैसले से ईरान ने ज़ाहिरर कर दिया कि वह अमेरिका या उसके सहयोगियों द्वारा थोपे गए तरीकों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है और इसे वह “सक्रिय कूटनीति” मानता है जिसका उद्देश्य अमेरिकी दबाव के सामने समान पोज़ीशन बनाए रखना है।