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इज़रायल नए सीरिया में तुर्की के आधिपत्य को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि…

अरब जगत के प्रमुख विश्लेषक अब्दुल बारी अतवान ने गुरुवार को राय अल-यौम अख़बार के संपादकीय में सीरिया से संबंधित ताज़ा घटनाक्रमों पर रौशनी डाली है और ज़ायोनी शासन की साज़िशों से पर्दा उठाया है।

राय अल-यौम के मुख्य संपादक और अरब जगत के एक प्रमुख विश्लेषक अब्दुल बारी अतवान ने समाचार पत्र के संपादकीय में लिखाः अंततः बशार अल-असद सरकार के पतन के बाद, ज़ायोनी शासन के आक्रमणों और कई इलाक़ों पर क़ब्ज़े के बावजूद, नए सीरियाई नेतृत्व की लगातार चार महीने से चुप्पी के बाद, अहमद अल-शरा (अबू मोहम्मद अल-जुलानी) के शासन के विदेश मंत्रालय ने ज़ायोनी आक्रमणों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। अतवान ने आगे लिखाः अल-शरा शासन ने दरा प्रांत में ज़ायोनी बलों की प्रगति और बमबारी की निंदा की और सीरियाई संप्रभुता के ख़िलाफ़ तेल-अवीव की आक्रामकता और सीरियाई नागरिकों के ख़िलाफ़ उसके अपराधों की अंतर्राष्ट्रीय जांच का आह्वान किया।

अतवान ने सवाल किया कि क्या अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इज़रायली आक्रमण को रोकने के सीरियाई प्रशासन के आह्वान पर प्रतिक्रिया देगा। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि कई कारणों से, हमें नहीं लगता कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय सीरिया के ख़िलाफ़, ज़ायोनी शासन के आक्रमण को रोकने के अबू मोहम्मद अल-जुलानी के आह्वान पर प्रतिक्रिया देगा।

उन्होंने आगे लिखाः सीरिया की संप्रभुता का उल्लंघन करने वाला, उसकी भूमि पर क़ब्ज़ा करने वाला और उसके नागरिकों का नरसंहार करने वाला इज़रायल है, न कि पूर्ववर्ती सीरियाई शासन। यही कारण है कि अमेरिका के नियंत्रण में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, सीरिया के ख़िलाफ़, इज़रायल के इन आक्रमणों का स्वागत करता है और उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है।

दूसरा महत्वपूर्ण बिंदू यह है कि सीरिया में परिवर्तन प्रक्रिया का मुख्य मिशन, जिसकी योजना अमेरिका के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने बनाई थी, पूर्ववर्ती सीरियाई शासन के पतन के साथ प्राप्त हो गया और इसलिए नए सीरिया को ज़ायोनी शासन के लिए ख़तरा नहीं माना जाता है। सीरिया के ख़िलाफ़ प्रतिबंधों और आर्थिक नाकेबंदी का जारी रहना, देश के लोगों की बदतर होती जीवन-स्थिति, अपराध, नरसंहार और सांप्रदायिक संघर्षों की घटनाएं और नए सीरियाई नेतृत्व द्वारा स्वयं को आतंकवाद की सूची से आधिकारिक रूप से हटाने में विफलता, इस बात की पुष्टि करती है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का सीरियाई लोगों की मदद करने का कोई इरादा नहीं है।

अरब जगत के इस प्रमुख विश्लेषक ने अपने संपादकीय में लिखाः तीसरा बिंदू यह है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, सीरिया को छोटे-छोटे सांप्रदायिक और जातीय टुकड़ों में विभाजित करने की ज़ायोनी शासन की योजना पर काम कर रहा है।

अतवान लिखते हैः हम अक्सर जानबूझकर उन ख़ुलासों पर विश्वास नहीं करते हैं, जिन्हें हेब्रू मीडिया इन दिनों बढ़ावा दे रहा है कि इज़रायल नए सीरिया में तुर्की के आधिपत्य को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से तुर्की ने कभी भी इज़रायल के लिए ख़तरा पैदा नहीं किया है। इसलिए नए सीरियाई शासन ने पहले दिन से ही घोषणा कर दी कि वह इज़रायल के लिए ख़तरा पैदा नहीं करना चाहता है और न ही उससे टकराव चाहता है। दूसरी ओर, तुर्की के अभी भी ज़ायोनी शासन के साथ राजनयिक और आर्थिक संबंध हैं।

उन्होंने आख़िर में लिखाः इज़रायल की मांगों और शर्तों के अनुसार, मध्य पूर्व को नया आकार देने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में जो मुख्य परिदृश्य तैयार किया जा रहा है, वह नक़ली ज़ायोनी शासन के संस्थापक डेविड बेन-गुरियन की सलाह और दृष्टि का मूर्त रूप है, जिन्होंने कहा थाः इज़रायल की महानता उसके परमाणु बमों या उसके सैन्य शस्त्रागार में नहीं है, बल्कि इराक़, सीरिया और मिस्र जैसे तीन देशों में अरब सेनाओं के विनाश में है।