उत्तर प्रदेश राज्य

अलीगढ़ : सालों पहले मर चुके 179 लोगों पर दर्ज कराई बिजली चोरी की रिपोर्ट : विजिलेंस के कर्मचारी बिजली चोरी पकड़ने के नाम पर करते हैं भारी वसूली : रिपोर्ट

अलीगढ। अक्सर बिजली चोरी की खबरें सुनने को मिलती हैं, बिजली चोरी रोकने और पकड़ने के लिए विजिलेंस कार्यवाही करती है, जानकारी के मुताबिक बिजली चोरी की आढ़ में खुद विजिलेंस के कर्मचारी मोटी कमाई करते हैं, ये लोग आगे कहीं बिजली चोरी करते किसी को पकड़ भी लेते हैं तो कार्यवाही करने के बजाये ऊपर से ऊपर लेन-दैन कर मामला निपटा देते हैं, सूत्रों के मुताबिक अलीगढ के सिविल लाइन में मेडिकल रोड पर मौजूद बिजली घर के पीछे विजिलेंस का कार्यालय है, विजिलेंस के कर्मचारी बिजली चोरी पकड़ने के बाद लोगों को यहाँ पहुंचने को कहते हैं और फिर उनके सामने दो विकल्प रख दिए जाते हैं, मामला निपटना है या हम लिखा पड़ी करें, पहने हुए लोग मामले को निपटाने में ही भलाई समझते हैं जिसके बाद विजिलेंस के कर्मचारी उनसे मोलभाव कर पैसा वसूलते हैं

सूत्रों के मुताबिक विजिलेंस की टीम त्योहारों के आसपास ज़्यादा सक्रिय हो जाती है और लोगों से वसूली करती है, विजिलेंस के कार्यालय के ऊपर ही विजिलेंस में काम करने वाले पुलिसकर्मियों के कमरे हैं जिनमे ये लोग रहते हैं, यहीं बैठ कर मामलों को निपटाया जाता है

इसे विद्युत व विजिलेंस टीम की लापरवाही ही कहेंगे। चेकिंग में बिजली चोरी पकडऩे वाली टीम आंख मूंद कर मृतकों को ही बिजली चोरी का आरोपी बना दे रही है। अलीगढ़ में इस प्रकार के 179 मामले सामने आ चुके हैं। विभागीय इंजीनियर और विजिलेंस टीम के दरोगाओं के इन कारनामों की पोल भी तब खुली जब अदालत में मुकदमों में लगी एफआर (अंतिम रिपोर्ट) की समीक्षा हुई। अदालत ने इसे बिजली विभाग के लोगों की बड़ी लापरवाही मानते हुए एफआर को अस्वीकार कर दिया और यह सभी मुकदमे एडीजे विशेष ईसी एक्ट संजय कुमार यादव की अदालत से दोबारा से विवेचना के लिए वापस भेजे जा रहे हैं।

विद्युत टीमें अपना गुडवर्क दिखाने व अफसरों के आगे नंबर बढ़ाने को किस कदर आंकड़ों का खेल करती हैं। इसकी गवाही ये आंकड़े दे रहे हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में अदालत में कुल 6463 मुकदमे पहुंचे, जिनमें से 1710 में अंतिम रिपोर्ट पिछले वर्ष स्वीकारी गईं। वहीं इस वर्ष अप्रैल में अभी तक 892 मुकदमे अदालत पहुंचे, जिनमें से 838 एफआर अदालत ने स्वीकार की हैं। इसी तरह के आंकड़े बढ़ाने के फेर में टीमें मृतकों को भी बिजली चोरी का आरोपी बना दे रही हैं। मुकदमा कराते समय बस इस बात का ध्यान रखा जाता है कि संयोजन किसके नाम से है या वह भवन किसके नाम से है। जिसमें बिजली प्रयोग हो रही थी। इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता कि कहीं उसी मृत्यु तो नहीं हो गई। जब विवेचना शुरू होती है तो आरोपी की मुकदमे से पूर्व में ही मृत्यु का तथ्य प्रकाश में आता है तो बिना समय गंवाए एफआर लगा दी जाती है।

अदालत में समीक्षा में ऐसे मुकदमों में इस तर्क के साथ आपत्ति लगाई जाती है कि अगर संयोजनधारक या भवन स्वामी की मृत्यु हो चुकी थी तो वर्तमान में बिजली प्रयोग कर रहे व्यक्ति पर आरोप लगाकर चार्जशीट किस वजह से नहीं भेजी गई। इसी तर्क के आधार पर अदालत में एफआर पर आपत्ति स्वीकारी जाती है। साथ में मुकदमे पुन:विवेचना के लिए अदालत स्तर से वापस भेजे जा रहे हैं।-प्रमोद कुलश्रेष्ठ, अधिवक्ता विद्युत विभाग

ये बिल्कुल गलत प्रक्रिया है कि चेकिंग के लिए गई टीम यह सत्यापन नहीं करती कि जिस व्यक्ति के नाम संयोजन है, वह जीवित है या नहीं। इसका सत्यापन करना ही चाहिए। तभी मुकदमा दर्ज करना चाहिए। इसे लेकर टीमों को नए सिरे से निर्देश जारी किए जाएंगे।-एके वर्मा चीफ इंजीनियर

अंदेशा ये भी
विवेचना में ऐसे मामलों में एफआर लगाने के पीछे अंदेशा ये भी है कि कहीं उस भवन में वर्तमान में रह रहे व्यक्ति से सांठगांठकर एफआर तो नहीं लगाई जा रही। इस अंदेशे को जांच के बाद ही सच उजागर किया जा सकता है।

गवाही दे रहे ये कुछ आंकड़े
-वर्ष 2023-24 में 100 मृतकों पर दर्ज कराए गए मुकदमों में एफआर लगाई
-वर्ष 2024-25 में 72 मृतकों पर दर्ज कराए गए मुकदमों में एफआर लगाई
-वर्ष 2025-26 में अब तक 7 मृतकों पर दर्ज कराए गए मुकदमों में एफआर लगाई

ये तथ्य भी जानें
चेकिंग में बिजली चोरी पकड़े जाने पर मुकदमा दर्ज किया जाता है। अगर विवेचना के बीच में आरोपी विभाग द्वारा निर्धारित शमन जमा करता है तो मुकदमे में एफआर लगाकर भेज दी जाती है, जिसमें शमन जमा करने का उल्लेख होता है। इस आधार पर अदालत में एफआर आसानी से स्वीकार होती है। सालाना बिजली चोरी के मुकदमों में दस से बारह करोड़ रुपये शमन वसूली का आंकड़ा अनुमानित है।