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अरब डायरी : गेंद अमेरिका के पाले में है, ज़ायोनी शासन की नौसैनिक नाकेबंदी ने इज़राइल के पास सीमित विकल्प छोड़े हैं!

पार्सटुडे – तेहरान के खिलाफ प्रतिबंधों को हटाने के लिए ईरान और अमेरिका के बीच इनडायरेक्ट बातचीत शनिवार को ओमान की राजधानी मस्कत में हुई।

अंततः, दो महीने की राजनीतिक बहस और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में हंगामे के बाद, ईरान ने अमेरिका के साथ इनडायरेक्ट बातचीत करने पर सहमति व्यक्त की, यह वार्ता तीसरे देश के रूप में ओमान की राजधानी मस्कत में शनिवार को हुई।

ओमान वार्ता ईरान और अमेरिका के बीच तनाव को कम करने के कूटनीतिक प्रयासों का हिस्सा है, जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम, प्रतिबंधों और क्षेत्रीय तनाव सहित विभिन्न मुद्दों पर वर्षों से बढ़ता जा रहा है।

हालांकि, ईरानी राजनयिक अधिकारी इस वार्ता को अमेरिका के इरादों को जानने के लिए एक परीक्षण मान रहे हैं। इसमें ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता “इस्माईल बक़ाई हामाने” भी शामिल हैं, जिन्होंने शुक्रवार को ईरान और अमेरिका के बीच अप्रत्यक्ष वार्ता की पूर्व संध्या पर सोशल नेटवर्क X पर एक पोस्ट में लिखा था।

उन्होंने लिखा: सद्भावना और पूर्ण सतर्कता के साथ, हम कूटनीति को एक वास्तविक अवसर दे रहे हैं, अमेरिका को इस निर्णय की सराहना करनी चाहिए, जो उनकी शत्रुतापूर्ण बयानबाजी के बावजूद लिया गया।

 

ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कि तेहरान न तो पूर्वाग्रह रखता है और न ही भविष्यवाणी करता है, कहा: ईरान शनिवार को दूसरे पक्ष के इरादों और गंभीरता का मूल्यांकन करने और उसके अनुसार अपने अगले कदमों को समायोजित करने का इरादा रखता है।

इससे पहले, ईरानी विदेशमंत्री सैयद अब्बास इराक़ची ने अमेरिकी अख़बार द वाशिंगटन पोस्ट में एक लेख में ओमान में वार्ता को एक परीक्षा माना था और लिखा था: गेंद अमेरिका के पाले में है।

इस संबंध में, ईरान की संसद मजलिसे शूराए इस्लामी के राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति आयोग के प्रेसीडियम के सदस्य बहनाम सईदी ने कहा कि अमेरिका के साथ ईरान की अप्रत्यक्ष वार्ता, शांतिपूर्ण परमाणु मुद्दे, रक्षा और मिसाइल शक्ति की आवश्यकताएं, ईरान की लाल रेखाएं हैं।

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि: शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा और मिसाइल तथा रक्षा क्षमताएं रखना, ईरान का अधिकार है और हम इन मामलों पर किसी भी देश के साथ बातचीत नहीं करेंगे।

अमेरिकी विदेशमंत्री मार्क रुबियो ने आशा व्यक्त की कि ईरान के साथ अमेरिकी वार्ता से शांति की दिशा में आगे बढऩे में मदद मिलेगी।

दूसरी ओर, पश्चिम एशियाई क्षेत्र में तनाव, युद्ध और संघर्ष की जड़, अर्थात् ज़ायोनी शासन, अंतर्राष्ट्रीय वातावरण में कूटनीतिक प्रक्रिया की संप्रभुता के बारे में चिंतित है।

ज़ायोनी अख़बार द जेरूसलम पोस्ट ने ओमान में ईरान और अमेरिका के बीच अप्रत्यक्ष वार्ता पर अपनी नवीनतम प्रतिक्रिया में एक लेख में जानकार ज़ायोनी स्रोतों का हवाला दिया है

अख़बार ने लिखा: वरिष्ठ इज़रायली सूत्रों ने चिंता व्यक्त की है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ईरान के साथ एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं जिसे इज़राइल “कमज़ोर” या “मध्यम” मानता है।

हालांकि ईरान, अमेरिका के प्रति निराशावादी बना हुआ है, और यह निराशावाद अमेरिका के विरोधाभासी व्यवहार से उपजा है, जिसके मूल में तेहरान के विरुद्ध दशकों से लगाए गए दमनकारी व ज़ालिम प्रतिबंध हैं। हाल ही में, जबकि तेहरान और वाशिंगटन ओमान में अप्रत्यक्ष वार्ता कर रहे हैं, अमेरिका, ज़ायोनी लॉबी के प्रभाव में, तेहरान पर दबाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।

शनिवार की इनडायरेक्ट वार्ता से पहले, अमेरिकी वित्तमंत्रालय ने तेल उद्योग पर प्रतिबंधों को दरकिनार करने में ईरान की मदद करने के आरोप में एक व्यक्ति और चार कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया।

यमनी प्रतिरोध ने इज़रायल को किस प्रकार रणनीतिक गतिरोध में डाल दिया?

पार्सटुडे – यमन की सशस्त्र सेनाओं द्वारा ज़ायोनी शासन की नौसैनिक नाकेबंदी ने इज़राइल के पास सीमित विकल्प ही छोड़े हैं तथा उसके लिए एक बड़ी रणनीतिक दुविधा पैदा कर दी है।

पार्सटुडे के अनुसार, इज़राइल की आंतरिक सुरक्षा अकादमी ने यमनी सशस्त्र बलों द्वारा इज़राइली शासन की घेराबंदी से उत्पन्न सुरक्षा, आर्थिक और सैन्य ख़तरों का विश्लेषण किया है।

उन्होंने लिखा: यमन की सशस्त्र सेनाओं ने इज़राइल के विरुद्ध जो खतरा उठाया है, वह केवल ग़ज़ा युद्ध का परिणाम नहीं है, बल्कि यह उससे सीधे जुड़ा हुआ मुद्दा है।

रिपोर्ट में इस बात पर गौर किया गया है कि जब तक इज़राइली शासन का ग़ज़ा के खिलाफ आक्रमण जारी रहेगा, तब तक यमन के मिसाइल हमले जारी रहेंगे। इस रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि यह मुद्दा, क्षेत्र में इज़राइल की सुरक्षा और रणनीतिक स्तर के लिए गंभीर और नई चुनौतियां पैदा करता है।

इस इज़राइली सुरक्षा केंद्र ने माना कि सनआ के पास हाई फ़ाई ताक़त स्वतंत्र सैन्य बल हैं, और इसके कारण उसे बढ़ती हुई शक्ति प्राप्त हो रही है, जिसे पारंपरिक साधनों का उपयोग करके रोकना या डायवर्ट करना असंभव है।

इस इज़रायली जासूसी एजेंसी की रिपोर्ट का मानना ​​है कि सनआ एक क्षेत्रीय शक्ति है जिसे सैन्य निर्णय लेने में उच्च स्तर की स्वतंत्रता प्राप्त है। रिपोर्ट के अनुसार, इस स्वतंत्रता ने लाल सागर और उसके आस-पास के जलमार्गों में सनआ की सैन्य गतिविधियों को रोकने के इज़राइली शासन और उसके सहयोगियों के प्रयासों को बहुत जटिल बना दिया है।

जबकि इज़राइली शासन ने सोचा था कि वह कुछ क्षेत्रों को निशाना बनाकर यमनी सशस्त्र बलों की समुद्री गतिविधियों को नियंत्रित कर सकता है, यमनी सशस्त्र बलों ने तनाव बढ़ाने में सफलता प्राप्त कर ली है, जिससे संकेत मिलता है कि वे लाल सागर में अमेरिकी सैन्य अभियानों को भी चुनौती दे सकते हैं और उसके व्यापारिक जहाजों के मार्ग को बदल सकते हैं।

सुरक्षा एवं अध्ययन केंद्र ने कहा कि उपरोक्त प्रक्रिया संवेदनशील स्थिति में ज़ायोनी शासन के लिए एक वास्तविक ख़तरा है तथा यमन के सशस्त्र बलों की ओर से मिसाइल ख़तरों के अलावा, सनआ द्वारा तेल अवीव और इज़राइली जहाजों की नौसैनिक नाकेबंदी, इज़राइली जहाज़ों की आवाजाही को बाधित करने और इज़राइली अर्थव्यवस्था पर और दबाव डालने में सफल रही है जो कि मुख्य रूप से समुद्री व्यापार पर केन्द्रित है।

ये दबाव ऐसे समय में आ रहे हैं जब तेल अवीव भी ग़ज़ा में युद्ध के परिणामों से पीड़ित है। ऐसा प्रतीत होता है कि ज़ायोनी शासन के विरुद्ध सनआ का खतरा केवल सैन्य खतरा नहीं है, बल्कि इज़राइल के लिए इसके व्यापक आर्थिक और राजनीतिक परिणाम भी सामने आए हैं।

इज़राइली जहाजों पर अंसारुल्लाह के मिसाइल हमलों और इज़इराल द्वारा समुद्री व्यापार को बंद करने या लाल सागर में शिपिंग पर रोक लगाने के नतीजों की वजह से इज़राइली शासन को यमनियों के खिलाफ अपनी प्रतिक्रिया पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।

ईरान ने इनडायरेक्ट बातचीत पर जोर देकर अमेरिका के खिलाफ पहला गोल किया

पार्सटुडे – अरब जगत के एक वरिष्ठ विश्लेषक ने एक लेख में ओमान में वाशिंगटन के साथ इनडायरेक्ट बातचीत पर तेहरान के जोर को अमेरिका के खिलाफ ईरान का पहला टारगेट क़रार दिया है।

अरब जगत के वरिष्ठ विश्लेषक “अब्दुल बारी अतवान” ने शनिवार को राय अल-यौम वेबसाइट पर ईरान और अमेरिका के बीच ओमान में चल रही अप्रत्यक्ष वार्ता के बारे में एक विस्तृत लेख में लिखा: ईरान ने ओमान की राजधानी मस्क़त में शनिवार को शुरू हुई “इच्छाशक्ति की लड़ाई” में अमेरिका के खिलाफ एक बड़ा गोल करने में सफलता प्राप्त की।

पार्सटुडे के अनुसार, अतवान ने कहा: यह सफलता वार्ता की “इनडायरेक्ट” प्रकृति पर ज़ोर देने से प्राप्त हुई। यह एक ऐसा मुद्दा था जो अमेरिकी पक्ष की इच्छा के विरुद्ध था, जो “डायरेक्ट” वार्ता को प्राथमिकता देता था।

यह बात अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने इज़रायल के प्रधानमंत्री बेन्यामीन नेतन्याहू के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कही। एक ऐसा बयान जिसने नेतन्याहू को आश्चर्यचकित और स्तब्ध कर दिया।

अरब जगत के विश्लेषक ने कहा: ट्रम्प के सलाहकार स्टीव वैटकॉफ के नेतृत्व में अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल कमजोर और नाजुक स्थिति से इन वार्ताओं में भाग ले रहा है। विशेषकर विश्व में 200 से अधिक देशों और संस्थाओं पर टैरिफ़ लगाने की अमेरिकी नीति की विफलता के बाद, जिसके परिणामस्वरूप अमेरिका अलग-थलग पड़ गया और यहां तक ​​कि पूर्व सहयोगी भी नए शत्रुओं में बदल गए, विशेष रूप से यूरोप और दक्षिण-पूर्व एशिया (दक्षिण कोरिया और जापान) जैसे देश भी।

श्री अब्दुल बारी अतवान ने कहा: अनुभवी राजनयिक अब्बास इराक़ची जिन्होंने 5+1 ग्रुप के साथ 2015 के परमाणु समझौते की वार्ता का भी नेतृत्व किया था, के नेतृत्व में ईरानियों ने वार्ता तकनीकों में अपने अनुभव और कौशल के साथ ट्रम्प की धमकियों और डराने की नीतियों के आगे घुटने नहीं टेके।

वे अपनी सारी शर्तें अमेरिका पर थोपने में सफल रहे, इसमें वार्ता को परमाणु मुद्दे तक सीमित रखना तथा मिसाइल प्रणाली, ड्रोन या ग़ज़ा, लेबनान, यमन और इराक में प्रतिरोधकर्ता गुटों के साथ संबंधों जैसे मुद्दों पर ध्यान न देना शामिल था, और अंततः उन्हें अपनी बात मनवाने में सफलता हासिल हुए है।

अरब जगत के वरिष्ठ विश्लेषक ने ट्रम्प द्वारा व्यापक स्तर पर सैन्य हमले की धमकी से पीछे हटने का कारण, इस्लामी क्रांति के नेता के नेतृत्व में ईरान के अमेरिका के साथ टकराव में अडिग रुख़ को क़रार दिया है।

उन्होंने कहा: ईरानियों को ट्रम्प पर भरोसा नहीं है, जिन्होंने 2018 में एकपक्षीय रूप से परमाणु समझौते को फाड़ दिया था। वे अच्छी तरह जानते हैं कि वह इज़रायली शासन की कठपुतली बन गये हैं।

श्री अतवान ने कहा: ट्रम्प के राष्ट्रपति काल के शुरुआती महीनों में, अमेरिका विश्व मंच पर एक बड़ा तमाशा बन गया था, और यह आश्चर्य की बात नहीं है कि ईरान और उसके सहयोगी, आज इन परिस्थितियों का लाभ उठा रहे हैं, खुश हैं और एक तरह से मज़े भी ले रहे हैं।

उनका कहना था कि जैसा कि कहावत है, जो आख़िर में हंसता है, वह सबसे अच्छा हंसता है … और भविष्य ही बताएगा कि इस लड़ाई का असली विजेता कौन है?

एक न्यूक्लियर प्लांट के दौरा कर रहे ईरान के पूर्व राष्ट्रपति हसन रूहानी
अमेरिका और ईरान के बीच किस बात को लेकर है विवाद, कब से चली आ रही है ये दुश्मनी

ईरान के परमाणु कार्यक्रम के मुद्दे पर अमेरिका और ईरान के बीच कई साल के बाद एक बार फिर से बातचीत शुरू हुई है. दोनों देशों के बीच यह उच्च स्तरीय बातचीत साल 2018 के बाद हो रही है.

शनिवार को ओमान में शुरू हुई इस बातचीत को दोनों ही देश सकारात्मक बता रहे हैं. दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर अगले हफ़्ते फिर वार्ता होगी.

इससे पहले साल 2018 में उस समय भी अमेरिकी राष्ट्रपति के पद पर मौजूद डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान और वैश्विक शक्तियों के बीच हुए पिछले परमाणु समझौते से अमेरिका को हटा लिया था.

जब से अमेरिका ने ज्वॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ़ एक्शन या जेसीपीओए से हाथ खींचा और ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए, उसी वक़्त से ईरान ट्रंप पर अपनी प्रतिबद्धता तोड़ने का आरोप लगाता रहा है.

सीआईए ने ईरान के पूर्व प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्दिक़ को सत्ता से बेदख़ल करवाया था
ईरान का परमाणु कार्यक्रम क्या है?

ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल नागरिक उद्देश्यों के लिए है. ईरान इस बात पर जोर देता है कि वह परमाणु हथियार विकसित करने की कोशिश नहीं कर रहा है.

लेकिन दुनियाभर के परमाणु कार्यक्रम पर नज़र रखने वाली संस्था, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी यानी आईएईए और अन्य कई देश ईरान के इस दावे से सहमत नहीं हैं.

साल 2002 में जब ईरान के गुप्त परमाणु ठिकानों का पता चला था, उसी समय उसके मक़सद पर संदेह पैदा हुआ था.

इसी के बाद परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) समझौता टूट गया, जिस पर ईरान समेत लगभग अन्य सभी देशों ने हस्ताक्षर किए थे.

एनपीटी सैन्य मक़सद के अलावा अन्य शांतिपूर्ण ज़रूरतों के लिए परमाणु तकनीक के इस्तेमाल की अनुमति देता है.

संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने साल 2010 से ईरान पर व्यापक आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए, क्योंकि उन्हें संदेह था कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम का इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने के लिए कर रहा है.

साल 2015 में, ईरान और छह वैश्विक ताक़तें जिनमें – अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस, जर्मनी और ब्रिटेन शामिल हैं, ये देश कई साल की बातचीत के बाद जेसीपीओए पर सहमत हुए थे, लेकिन अमेरिका साल 2018 में इससे अलग हो गया था.

दरअसल अमेरिका और ईरान के बीच तल्ख़ी कोई नई नहीं है. इन दोनों देशों के बीच रिश्ते में यह दरार काफ़ी पुरानी है.

1979 की क्रांति के बाद निर्वासन से लौटते आयतोल्लाह ख़ुमैनी

ईरान और अमेरिका एक-दूसरे के दुश्मन क्यों?

ईरान और अमेरिका की दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है. गाहे-बगाहे दोनों देशों के बीच तनाव की ख़बरें सारी दुनिया में हलचल पैदा कर देती है.

अब ईरान के सबसे ताक़तवर सैन्य कमांडर जनरल क़ासिम सुलेमानी की अमरीकी हवाई हमले में मौत के बाद एक बार फिर दोनों देशों की दुश्मनी अपने चरम पर पहुँच गई है.

आख़िर अमेरिका को ईरान क्यों नहीं सुहाता है? क्या है इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि?

 

1953 – तख़्तापलट से दुश्मनी की शुरुआत

अमेरिका के साथ ईरान की दुश्मनी का पहला बीज पड़ा 1953 में जब अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए ने ब्रिटेन के साथ मिलकर ईरान में तख़्तापलट करवा दिया.

निर्वाचित प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्दिक़ को गद्दी से हटाकर अमेरिका ने सत्ता ईरान के शाह रज़ा पहलवी के हाथ में सौंप दी.

इसकी मुख्य वजह थी – तेल. धर्मनिरपेक्ष नीतियों में विश्वास रखने वाले ईरानी प्रधानमंत्री ईरान के तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे. वो ईरानी शाह की ताक़त पर भी लगाम लगाना चाहते थे.

ये पहला मौक़ा था जब अमेरिका ने शांति के दौर में किसी विदेशी नेता को अपदस्थ किया था. इस घटना के बाद इस तरह से तख़्तापलट अमेरिका की विदेश नीति का हिस्सा बन गया.

1953 में ईरान में अमेरिका ने जिस तरह से तख्तापलट किया उसी का नतीजा थी 1979 की ईरानी क्रांति.

ईरान-इराक़ युद्ध के शुरुआती दौर में इराक़ी शासक सद्दाम हुसैन
1979: ईरानी क्रांति

1971 में ईरान के ख़ूबसूरत और ऐतिहासिक शहर पर्सेपोलिस में एक शानदार पार्टी हुई.

ईरान के शाह ने इसमें यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो, मोनाको के प्रिंस रेनीअर और प्रिंसेस ग्रेस, अमेरिका के उपराष्ट्रपति सिप्रो अग्नेयू और सोवियत संघ के स्टेट्समैन निकोलई पोगर्नी को बुलाया.

लेकिन विदेशों में निर्वासन की ज़िंदगी बिता रहे ईरान के एक नए नेता ने आठ साल बाद इस पार्टी को शैतानों की पार्टी बताते हुए शाह के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया.

उस नेता का नाम था आयतोल्लाह रुहोल्लाह ख़ुमैनी. 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति से पहले ख़ुमैनी तुर्की, इराक़ और पेरिस में निर्वासित जीवन जी रहे थे.

ख़ुमैनी, शाह पहलवी के नेतृत्व में ईरान के पश्चिमीकरण और अमेरिका पर बढ़ती निर्भरता के लिए उन्हें निशाने पर लेते थे.

ख़ुमैनी के नेतृत्व में शाह के ख़िलाफ़ ईरान में असंतोष की बयार ने क्रांति का रूप ले लिया. देश में महीनों तक धरना-प्रदर्शन-हड़ताल होने लगे.

आख़िरकर 16 जनवरी 1979 को ईरानी शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी को देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.

दो सप्ताह बाद, 1 फ़रवरी 1979 को ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता के रुप में आयतोल्लाह ख़ुमैनी निर्वासन से लौटे. तेहरान में उनके स्वागत के लिए 50 लाख लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी.

फिर एक जनमत संग्रह हुआ. और 1 अप्रैल 1979 को ईरान को एक इस्लामी गणतंत्र घोषित कर दिया गया.

साल 1979 में ईरानी क्रांति के तत्काल बाद ईरान औरअमेरिका के राजनयिक संबंध ख़त्म हो गए

ख़ुमैनीः क्रांतिकारी, जो बन गया रुढ़िवादी

एक ऐसा देश जिसने क्रांति कर सत्ता पलटी, वो रूढ़िवादी राष्ट्र कैसे बन गया, इसे लेकर एक अंतरराष्ट्रीय ग़ैर-सरकारी संस्था प्रोजेक्ट सिंडिकेट ने अपनी एक रिपोर्ट में जर्मन दार्शनिक हना एरेंट की एक टिप्पणी का उल्लेख किया है.

एरेंट ने कहा था, ”ज़्यादातर उग्र क्रांतिकारी क्रांति के बाद रूढ़िवादी बन जाते हैं.”

कहा जाता है कि ख़ुमैनी के साथ भी ऐसा ही हुआ. सत्ता में आने के बाद ख़ुमैनी की उदारता में अचानक से परिवर्तन आया. उन्होंने ख़ुद को वामपंथी आंदोलनों से अलग कर लिया.

उन्होंने विरोधी आवाज़ों को दबाना शुरू कर दिया और इस्लामिक रिपब्लिक और ईरान की लोकतांत्रिक आवाज़ में एक किस्म की दूरी बननी शुरू हो गई.

ईरानी प्रदर्शनकारियों ने 52 अमरीकी नागरिकों को 444 दिनों तक बंधक बनाकर रखा
1979-81: ईरानी दूतावास का बंधक संकट

क्रांति के परिणामों के तत्काल बाद ईरान और अमेरिका के राजनयिक संबंध ख़त्म हो गए.

तेहरान में ईरानी छात्रों के एक समूह ने अमरीकी दूतावास को अपने क़ब्ज़े में ले लिया था और 52 अमरीकी नागरिकों को 444 दिनों तक बंधक बनाकर रखा था.

कहा जाता है कि इसमें ख़ुमैनी का भी मौन समर्थन था. अमरीकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर से इनकी मांग थी कि शाह को वापस भेजें. शाह न्यूयॉर्क में कैंसर का इलाज कराने गए थे.

बंधकों को तब तक रिहा नहीं किया गया जब तक रोनल्ड रीगन अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बन गए.

आख़िरकार पहलवी की मिस्र में मौत हो गई और ख़ुमैनी ने अपनी ताक़त को और धर्म केंद्रित किया.

ईरान और इराक़ के बीच आठ साल तक भीषण युद्ध चला था

1980-88: ईरान-इराक़ के बीच आठ साल लंबी लड़ाई

साल 1980 में सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमला बोल दिया. ईरान और इराक़ के बीच आठ साल तक ख़ूनी युद्ध चला.

इस युद्ध में अमेरिका सद्दाम हुसैन के साथ था. सोवियत संघ ने भी सद्दाम हुसैन की मदद की थी.

यह युद्ध एक समझौते के साथ ख़त्म हुआ. युद्ध में कम से कम पांच लाख ईरानी और इराक़ी मारे गए थे.

कहा जाता है कि इराक़ ने ईरान में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया था और ईरान में इसका असर लंबे समय तक दिखा.

यह वही समय था जब ईरान ने परमाणु बम की संभावनाओं को देखना शुरू कर दिया था.

ईरान ने परमाणु कार्यक्रम पर जो काम करना शुरू किया था वो 2002 तक छुपा रहा.

अमेरिका का इस इलाक़े में समीकरण बदला इसलिए नाटकीय परिवर्तन देखने को मिला.

अमेरिका ने न केवल सद्दाम हुसैन को समर्थन करना बंद किया बल्कि इराक़ में हमले की तैयारी शुरू कर दी थी.

कहा जाता है कि अमेरिका के इस विनाशकारी फ़ैसले का अंत ईरान को मिले अहम रणनीतिक फ़ायदे से हुआ.

हालांकि ईरान अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के प्रसिद्ध टर्म ‘एक्सिस ऑफ इविल’ में शामिल हो गया था.

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर पश्चिमी देशों ने हमेशा संदेह किया

परमाणु कार्यक्रम की तैयारी

आगे चलकर यूरोप ने ईरान से परमाणु कार्यक्रम पर बात करना शुरू किया. हाविय सालोना उस वक़्त यूरोपीय यूनियन के प्रतिनिधि के तौर पर ईरान से बात कर रहे थे.

उन्होंने प्रोजेक्ट सिंडिकेट की एक रिपोर्ट में कहा है कि ईरान में 2005 का चुनाव था और इस वजह से बातचीत पर कोई कामयाबी नहीं मिली. 2013 में जब हसन रूहानी फिर से चुने गए तो विश्व समुदाय ने परमाणु कार्यक्रम को लेकर फिर से बात शुरू की.

दशकों की शत्रुता के बीच ओबामा प्रशासन 2015 में जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ ऐक्शन पर पहुंचा. इसे बड़ी राजनीतिक कामयाबी के तौर पर देखा गया.

अमरीकी राष्ट्रपति के प्रतिबंध लगाने के बाद तेहरान में प्रदर्शन
ट्रंप के दौर में टकराव

इस बार अमेरिका में चुनाव आया और ट्रंप ने इस समझौते को रद्द कर दिया. ट्रंप प्रशासन ने ईरान पर नए प्रतिबंध लगा दिए.

यहां तक कि ट्रंप ने दुनिया के देशों को धमकी देते हुए कहा कि ईरान से व्यापार जो करेगा वो अमेरिका से कारोबारी संबंध नहीं रख पाएगा.

इसका नतीजा यह हुआ कि ईरान पर अमेरिका और यूरोप में खुलकर मतभेद सामने आए. यूरोपीय यूनियन ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को बचाने की कोशिश की लेकिन ट्रंप नहीं माने.

ईरानी क्रांति के बाद पिछले चार दशकों में ईरान और अमेरिका के बीच अदावत के कई नाज़ुक मोड़ आए हैं.

ईरानी जनरल की अमरीकी हवाई हमले में मौत के बाद एक बार फिर दोनों देशों की दुश्मनी एक नए मुक़ाम पर पहुँच गई थी.

 

 

हमास का दावा- इसराइली सेना ने ग़ज़ा के अस्पताल पर हमला किया

हमास ने दावा किया है कि इसराइली हमले ने ग़ज़ा में मुख्य मेडिकल फ़ैसिलिटी के इंटेंसिव केयर और सर्ज़री डिपार्टमेंट को नष्ट कर दिया है.

ऑनलाइन पोस्ट किए गए वीडियो में मिसाइल हमले के बाद ग़ज़ा पट्टी के अल-अहली बापटिस्ट अस्पताल से बड़ी लपटें और धुआं उठता हुआ दिखाई दे रहा है.

वीडियो में कुछ मरीज़ सहित कई लोग घटनास्थल से भागते नज़र आ रहे हैं. हमास ने इस हमले को एक ‘भयानक अपराध’ कहा है.

एक स्थानीय पत्रकार ने कहा कि इसराइली रक्षा बलों (आईडीएफ) ने एक डॉक्टर को फोन किया था और अस्पताल खाली करने की चेतावनी दी थी.

नागरिक आपातकालीन सेवा के अनुसार, इस हमले में किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है.

अस्पताल में काम कर रहे स्थानीय पत्रकार ने बताया कि इसराइली सेना के एक अधिकारी ने इमरजेंसी डिपार्टमेंट के एक डॉक्टर को फोन किया था. पत्रकार के मुताबिक़ अधिकारी ने अस्पताल को तुरंत खाली करने के लिए कहा था.

 

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