ईरान ने एक अक्तूबर की रात इसराइल पर दर्जनों बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला किया. इस साल ये दूसरी बार है, जब ईरान ने इसराइल पर सीधा हमला किया है.
हिज़्बुल्लाह चीफ़ हसन नसरल्लाह और हमास के नेता इस्माइल हनिया की मौत के बाद ईरान की तरफ से ये बड़ा हमला किया गया है.
इसराइल के विदेश मंत्रालय के मुताबिक़, ईरान ने 181 बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं और इसमें एक फ़लस्तीनी व्यक्ति की मौत हुई है.
पाँच महीने पहले यानी अप्रैल में ईरान ने इसराइल पर क़रीब 110 बैलिस्टिक मिसाइल और 30 क्रूज़ मिसाइलों से हमला किया था.
मध्य पूर्व में ईरान और इसराइल की दुश्मनी में आया नया दौर फिलहाल खत्म होता नजर नहीं आ रहा है.
हमले के बाद इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने बदले की बात कही है. उन्होंने कहा, “ईरान ने आज एक बड़ी गलती की है और उसे इसकी क़ीमत चुकानी होगी.”
नेतन्याहू के ऐसा कहने के एक दिन पहले यानी 30 सितंबर को पीएम मोदी ने नेतन्याहू से बात की थी और ट्वीट कर कहा था- ”हमारी दुनिया में आतंकवाद की कोई जगह नहीं है.”
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर ईरान और इसराइल के बीच सीधी जंग शुरू होती है तो इसका भारत पर क्या असर पड़ेगा?
आम भारतीय की जेब पर असर?
इसराइल पर ईरान के हमले के बाद से मध्य-पूर्व में संघर्ष बढ़ने की आशंका बढ़ गई है, जिसका सीधा असर तेल की कीमतों पर दिखाई दे रहा है.
ये असर आप इस बात से भी समझ सकते हैं कि जब सिर्फ़ ईरान के मिसाइल हमला करने की आशंका जताई जा रही थी, उतनी देर में भी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें क़रीब तीन फ़ीसदी बढ़ गई थीं.
ब्रेंट क्रूड अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमत बताने वाला बेंचमार्क है. ये एक फ़ीसदी से अधिक बढ़कर 74.40 डॉलर प्रति बैरल हो गया है. मंगलवार को कारोबार के दौरान इसमें पांच फीसदी से ज्यादा का उछाल दर्ज किया गया है.
इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफेयर्स से जुड़े सीनियर फ़ेलो डॉक्टर फ़ज़्जुर्रहमान कहते हैं कि अगर ईरान और इसराइल के बीच जंग शुरू होती है तो भारत के आम नागरिक की जेब पर इसका सीधा असर पड़ेगा.
वे कहते हैं, “अगर जंग होती है तो इसका असर सिर्फ ईरान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह अफगानिस्तान, इराक, सऊदी अरब, कतर और यूएई तक जाएगा. ये ऐसे देश हैं जहां से बड़े पैमाने पर भारत तेल आयात करता है.”
फ़ज़्जुर्रहमान कहते हैं, “हमलों की स्थिति में तेल की सप्लाई कम होगी और डिमांड ज्यादा, ऐसे में तेल के दाम बढ़ने लगेंगे जो भारत पर सीधा असर डालेंगे.”
ऐसी ही बात जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजॉल्यूशन की फ़ैकल्टी मेंबर प्रो. रेशमी काज़ी कहती हैं, “गल्फ़ क्षेत्र और रेड सी दोनों युद्ध क्षेत्र में आ रहे हैं. अगर लड़ाई बढ़ती है तो तेल के दामों में एकदम से बड़ा उछाल आएगा.”
भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती
भारत के ईरान और इसराइल दोनों के साथ अच्छे द्विपक्षीय संबंध हैं. ईरान भारत को तेल आपूर्ति करने वाले शीर्ष देशों में से एक रहा है.
परमाणु कार्यक्रम की वजह से लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बीच भी भारत ने ईरान के साथ संबंधों को संतुलित बनाए रखा है.
हाल ही में जब ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलीकॉप्टर हादसे में मौत हुई थी तब भी भारत सरकार ने देश में एक दिवसीय राष्ट्रीय शोक की घोषणा की थी.
विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा था, “पूरे भारत में शोक के दिन सभी सरकारी इमारतों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा. इस दिन देश में कोई आधिकारिक मनोरंजन कार्यक्रम नहीं आयोजित किया जाएगा.”
वहीं दूसरी तरफ साल 1948 से अस्तित्व में आए इसराइल के साथ भारत ने राजनयिक संबंध 1992 में स्थापित किए थे लेकिन पिछले दो दशकों में दोनों देशों के संबंध बहुत मजबूत हुए हैं.
इसराइल, भारत को हथियार और तकनीक निर्यात करने वाले शीर्ष देशों में से एक है.
फ़ज़्जुर्रहमान कहते हैं, “दोनों देशों के बीच डिप्लोमैटिक बैलेंस बनाना भारत के लिए चुनौती होगा. हालांकि अब तक हमने ये काम बहुत खूबसूरती से किया है. भारतीय कूटनीति पिछले दस सालों में ऐसे रही है कि उसने कहीं भी इनकैम्पमेंट नहीं किया है.”
प्रो. रेशमी काज़ी कहती हैं कि इस तरह से दोनों देशों के बीच संतुलन बनाए रखना ही कूटनीति है, क्योंकि भारत किसी को भी नाराज़ नहीं कर सकता.
वे कहती हैं, “अगर भारत, इसराइल की तरफ झुकेगा तो ईरान के साथ रिश्तों पर असर पड़ेगा और ये गल्फ में रहने वाले भारतीयों को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करेगा.”
काज़ी कहती हैं, “हाल ही में ईरान ने पुर्तगाली झंडे वाले मालवाहक जहाज को अपने कब्जे में ले लिया था, जिसमें 17 भारतीय लोग थे. इस मामले में विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर को बीच बचाव करना पड़ा, जिसके बाद भारतीयों को छोड़ा गया. इस तरह की घटनाओं को एक संदेश की तरह देखना चाहिए कि अगर ईरान को लेकर कोई पक्षपात होता है तो वे रिएक्ट कर सकते हैं.”
भारतीय प्रोजेक्ट्स को लग सकता है झटका?
ईरान का चाबहार बंदरगाह सामरिक दृष्टि से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इस बंदरगाह की मदद से भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ व्यापार करने के लिए पाकिस्तान के रास्ते से होकर नहीं गुजरना पड़ेगा.
दोनों देशों ने 2015 में चाबहार में शाहिद बेहेश्टी बंदरगाह के विकास के लिए हाथ मिलाए थे.
फ़ज़्जुर्रहमान कहते हैं कि अगर ईरान और इसराइल के बीच युद्ध शुरू होता है तो ईरान की प्राथमिकता, चाबहार जैसे प्रोजेक्ट से हटकर इसराइल पर होगी और यह काम रुक जाएगा.”
वहीं रेशमी काज़ी कहती हैं कि चाबहार एक ऐसा प्रोजेक्ट है जिस पर पहले से मध्य-पूर्व की जियो पॉलिटिक्स का गहरा असर है, ऐसे में यह प्रोजेक्ट फिर से लटक जाएगा.
दूसरी तरफ फ़ज़्जुर्रहमान कहते हैं कि मध्य पूर्व में भारत कई बड़े प्रोजेक्ट्स का हिस्सा है, ऐसे में अगर एक नया युद्ध शुरू होता है तो प्रोजेक्ट्स से ध्यान हट जाएगा और वे समय से पूरे नहीं हो पाते.
2023 में नई दिल्ली में जी 20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा परियोजना पर हस्ताक्षर किए गए थे. इसमें भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात के साथ-साथ यूरोपीय संघ, इटली, फ्रांस और जर्मनी की हिस्सेदारी होगी.
इस गलियारे का मकसद एक बड़ा परिवहन नेटवर्क स्थापित करना है. इसकी मदद से भारत का सामान गुजरात के कांडला से यूएई, सऊदी अरब, इसराइल और ग्रीस के रास्ते यूरोप में आसान से पहुंच सकता है.
फ़ज़्जुर्रहमान कहते हैं कि युद्ध की स्थिति में सबसे ज्यादा नुकसान भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा का होगा, क्योंकि इसकी पूरी टाइमलाइन बिगड़ जाएगी.
इसके अलावा I2U2 जैसे नए व्यापारिक ग्रुपों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. इस ग्रुप में भारत, इसराइल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात एक साथ हैं.
विदेशी मुद्रा भंडार पर असर
काम की तलाश में बड़े पैमाने पर भारत से लोग खाड़ी देश जाते हैं. भारतीय विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), ओमान, बहरीन, क़तर और कुवैत में करीब 90 लाख भारतीय रह रहे हैं.
इनमें सबसे ज्यादा यानी 35 लाख से ज्यादा भारतीय संयुक्त अरब अमीरात में रहते हैं. वहीं सऊदी अरब में करीब 25 लाख, कुवैत में 9 लाख, कतर में 8 लाख, ओमान में करीब 6.5 लाख और बहरीन में करीब तीन लाख से ज्यादा भारतीय रह रहे हैं.
वहीं अगर ईरान की बात करें तो यह संख्या 10 हजार और इसराइल में 20 हजार है. यहां रहने वाले भारतीय एक बड़ी रकम भारत भेजते हैं.
खाड़ी देशों की मुद्राएं भारतीय रुपये की तुलना में बेहद मजबूत हैं. इसका फायदा कामगारों को होता है. बहरीन का एक दिनार करीब 221 रुपये के आस-पास है, जबकि ओमान के एक रियाल की भारतीय रुपयों में कीमत करीब 217 है.
इसके अलावा कतरी रियाल, सऊदी रियाल और संयुक्त अरब अमीरात की रियाल का मूल्य 22 से 23 रुपये के आसपास है.
डॉक्टर फ़ज़्ज़ुर्रहमान कहते हैं, “खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीय करीब लाखों डॉलर की राशि भारत भेजते हैं जिससे भारत का विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत होता है. अगर ईरान और इसराइल के बीच युद्ध शुरू हुआ तो इसका सीधा असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ेगा.”
17वीं लोकसभा में विदेश मंत्रालय की पेश की रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2023 तक सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), ओमान, बहरीन, क़तर और कुवैत से 120 अरब अमेरिकी डॉलर भारत को प्राप्त हुए हैं.
फ़ज़्ज़ुर्रहमान कहते हैं, “जंग की स्थिति में भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती खाड़ी देशों में रह रहे भारतीयों को बाहर निकालने और फिर वापिस से देश में रिहेबलिटेट करने की होगी, जो आसान काम नहीं होगा.”
भारत की सुरक्षा को खतरा?
जानकारों का मानना है कि युद्ध की स्थिति में भारत की सुरक्षा चुनौतियां भी बढ़ेंगी.
फ़ज़्ज़ुर्रहमान कहते हैं, “जब पावर वैक्यूम बढ़ता है तो नॉन स्टेट एक्टर्स अपनी जगह बनाने लगते हैं. अरब में जब जंग होती है तो उसका सबसे ज्यादा फायदा वहां की मिलिशिया उठाती है.”
वे कहते हैं, “जब अरब स्प्रिंग हुई तो आईएसआईएस सामने आया, फिर इस्लामिक स्टेट-खुरासान बना. उसके बाद वो अफगानिस्तान की तरफ बढ़े. पाकिस्तान को सिक्योरिटी चैलेंज दिया.”
फ़ज़्ज़ुर्रहमान बताते हैं, “यहां तक कहा गया कि इस तरह के संगठन भारत की तरफ भी बढ़ सकते हैं. ऐसे में ईरान- इसराइल के बीच का तनाव हर तरह से भारत को प्रभावित करने जा रहा है.”
वे कहते हैं, “अभी के समय में आईएस जैसे संगठन दबे हुए हैं, लेकिन युद्ध की स्थिति में उन्हें बाहर निकलकर खुद को मजबूत करने का मौका मिलेगा.”